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अहिल्या बाई होलकर "राजमाता" Ahilyabai Holkar

अहिल्या बाई होलकर "राजमाता"


18 वीं शताब्दी में पेशवा बाजीराव ने अपनी जागीर के सेनापति और अपने दाएं हाथ के रूप में काम करने वाले मल्हार राव होलकर को मध्य प्रदेश राज्य के मालवा क्षेत्र की जागीर 1730 में सौप दी जिसके पश्चात मल्हार राव होलकर में मालवा की जागीर की राजधानी इंदौर को बनाया तथा मालवा को स्वतंत्र होलकर राज्य के रूप में स्थापित किया। 
     इस राज्य में मराठा साम्राज्य का शासन हुआ उनके पुत्र खंडेराव जो की मल्हार राव की इकलौती संतान थे। 
 वह अपने पिता की तरह ना ही बलशाली थे, ना ही उनकी राजकाज एवं प्रशासन में कोई रुचि थी। 

     इसीलिए मल्हार राव को अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक योग्य व्यक्ति की आवश्यकता थी इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने अपने बेटे खंडेराव के लिए ऐसे बहू या पुत्र वधू की तलाश शुरू की जो उनके बिगड़ैल बेटे मालवा राज्य दोनों को ही अच्छी तरह से संभाल सके। 

     एक बार मल्हार राव होलकर अपनी एक मुहिम से लौटते समय रात के समय एक गांव में डेरा डालते हैं यह गांव चौड़ी नाम से जाना जाता है इस गांव में शाम के समय गांव के एक प्राचीन शिव मंदिर में आरती होता देख मल्हार राव उस मंदिर के पास ठहर जाते हैं तभी उनकी नजर सात आठ वर्ष की एक सुशील कन्या पर पड़ती है। 
     
    जो उस गांव के पटेल शिंदे की बेटी थी मल्हार राव ने इस कन्या को देखने के पश्चात अपनी पुत्रवधू बनाने का निर्णय ले लिया और अपने पुत्र खंडेराव से विवाह कराने का निर्णय ले लिया तथा उन दोनों का विवाह करवा दिया अहिल्या बाई ने अपने सास और ससुर का दिल जीता और अपने पति खंडेराव के बिगड़ैल स्वभाव को भी बदलने में वह सफल रही। 
     उसके पश्चात अहिल्याबाई ने राज्य के शासन में भी रुचि दिखाई किंतु अहिल्याबाई के पति खंडेराव सूरजमल जाट से युद्ध करते समय गोली लगने से वीरगति को प्राप्त करें जिसके पश्चात अहिल्याबाई अपने पति की चिता के साथ सती होना चाहती थी किंतु मल्हारराव के समझाने पर और मल्हार राव ने अपनी विवशता व्यक्त करने पर की बेटे को तो हमको ही चुके हैं। 
     किंतु हम अपनी पुत्रवधू को नहीं खो सकते ऐसा सुनकर अहिल्याबाई ने सती होने का विचार त्याग दिया और परिवार एवं प्रजा के लिए जीवित रहने का निर्णय लिया पति की मृत्यु के पश्चात अहिल्याबाई ने मालवा राज्य की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभाल और उन्हें मल्हार राव का संरक्षण प्राप्त हुआ। 
     
    किंन्तु कुछ ही समय बीतने के पश्चात वृद्ध मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गई अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव को अहिल्याबाई ने बड़े लाड प्यार से बड़ा किया और उसकी शादी की तथा मालवा राज्य की राजगद्दी अपने बेटे मालेराव को सौंप दी किंतु माले राव एक गंभीर बीमारी से पीड़ित हुए और 22 वर्ष की अल्पायु में ही मालेराव की मृत्यु हो गई। 
    
     जिसके पश्चात अहिल्याबाई काफी दुखी और चिंतित हुई पति की मृत्यु ससुर की मृत्यु और पुत्र की मृत्यु का दुख अहिल्याबाई को और उसके आत्मविश्वास को नहीं तोड़ सका अहिल्याबाई ने इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी और राज्य की सेवा में पुनः लग गई इस समय अहिल्याबाई अकेली पूरे मालवा राज्य की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही थी। 
     इन परिस्थितियों को देखते हुए दूसरे राज्य के शासकों की नजर मालवा राज्य पर थी मालवा के पुराने अधिकार रखने वाले चंद्रचूर ने विश्वासपात्र राघोबा को एक पत्र लिखा और होलकर राज्य के स्वामी हीन होने की बात अपने पत्र में लिखी इस मौके को बड़ा अच्छा अवसर है जब हम राज्य को अपने नियंत्रण में ले सकते हैं मालवाराज्य को जीतने के इस षड्यंत्र के बारे में रानी अहिल्याबाई होल्कर को पता चला जिसके पश्चात संपूर्ण राज्य की जिम्मेदारी अहिल्याबाई ने अपने हाथों में ले ली। 
     इस समय होलकर राज्य के सेनापति तुकोजीराव ने अहिल्याबाई होल्कर को राज्य का शासन चलाने में सहयोग प्रदान किया अहिल्याबाई ने सेना को एकत्रित करना शुरू किया उनके रसद भोजन को जमा करना आरंभ किया और पड़ोसी राज्यों को सूचित किया एवं पेशवा माधवराव को भी इसकी जानकारी भेज दी सभी ने उनकी सहायता करने का निर्णय लिया पेशवा ने भी रानी अहिल्याबाई का पूर्ण सहयोग किया यह पहला मौका था जब राज्य में अहिल्याबाई ने एक प्रयोग किया और महिलाओं की सेना तैयार की और उन्हें सैन्य प्रशिक्षण प्रदान किया जिसके पश्चात दे राघोबा से युद्ध करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी थी। 
     उन्होंने राघोबा को संदेश भेजा कि वह क्षिप्रा नदी पार नहीं करें अन्यथा एक बड़े युद्ध के लिए तैयार रहें संदेश प्राप्त होने के बाद राघोबा ने महिलाओं से युद्ध ना करने का निर्णय लिया क्योंकि उन्हें यह डर था कि यदि वे महिलाओं की सेना से युद्ध करेंगे और हार जाएंगे तो उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी साथी अहिल्याबाई को पड़ोसी राज्यों का भी सहयोग था। 
     जिस के डर से राघोबा ने युद्ध ना करने का निर्णय लिया और अपने मालवा की ओर बढ़ते कदमों को पीछे खींच लिया यह निर्णय अहिल्याबाई की दूरदर्शी सोच और सूझबूझ का उत्कृष्ट नमूना इसमें उन्होंने कूटनीतिक बुद्धि से दुश्मन के हौसलों को पस्त कर दिया और अपने मालवा राज्य की सुरक्षा की अहिल्याबाई ने संपूर्ण जीवन में मालवा राज्य और वहां की प्रजा के लिए अनेकों काम की जिनमें उन्होंने राज्य में अनेक शिव मंदिरों का निर्माण करवाया। 
    
     नर्मदा के किनारे घाटों का निर्माण करवाया साथी हथकरघा वह बुनकरों को कपड़ा बनाने के लिए वाराणसी और दूसरे राज्यों से लाकर मालवा क्षेत्र में बसाया और अनेक ऐसे कार्य किए जिससे राज्य की आर्थिक गतिविधियों में तेजी आए अहिल्याबाई के इन कार्यों और राज्य के प्रति समर्पण से मालवा की प्रजा काफी खुश थी। 

     और उन्होंने उन्हें राजमाता का दर्जा प्रदान किया वे राज्य की प्रमुख होने के बावजूद भी राज पाठ का कार्य एक छोटे से कमरे से करती थी और अधिकतर समय अपना पूजा पाठ में बिताती थी। 

     13 अगस्त 1795 को अहिल्या बाई का निधन महेश्वर स्थित उनके निवास स्थान पर हुआ वह आज भी मालवा और संपूर्ण भारत वासियों के हृदय में राज माता का स्थान लेकर जीवित है उनका जीवन संघर्ष और तपस्या तथा विवेकपूर्ण था जो दूसरों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। 

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