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शास्त्रीय नृत्य कथकली Indian classical dance Kathakali


 

कथकली नृत्य: इतिहास, विशेषताएँ और महत्व

कथकली भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य रूप है, जिसकी उत्पत्ति केरल राज्य में हुई थी। यह नृत्य नाट्य, संगीत और नाटकीय अभिव्यक्तियों का मिश्रण है, जिसमें पौराणिक कथाओं और महाकाव्यों से प्रेरित कहानियों को प्रस्तुत किया जाता है।


1. कथकली का इतिहास

कथकली की जड़ें 17वीं शताब्दी में केरल के शाही दरबारों से जुड़ी हुई हैं। इसे राजा कुलशेखर वर्मा और अन्य शाही परिवारों ने प्रोत्साहित किया। इस नृत्य शैली पर केरल की पारंपरिक कृत्तियट्टम और रमनट्टम जैसी प्राचीन नाट्यकलाओं का प्रभाव है।

मुख्य ऐतिहासिक तथ्य:

  • कथकली का विकास 17वीं शताब्दी में हुआ।
  • यह संस्कृत नाट्यशास्त्र और पारंपरिक लोकनृत्यों का मिश्रण है।
  • रामायण, महाभारत और अन्य पौराणिक कथाओं को कथकली में प्रस्तुत किया जाता है।

2. कथकली की विशेषताएँ

(A) वेशभूषा और श्रृंगार

कथकली नृत्य की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी भव्य वेशभूषा और रंगीन श्रृंगार है।

  • मुख सज्जा (मेकअप): रंगों का उपयोग चरित्रों को दर्शाने के लिए किया जाता है।
    • हरा (पच्‍चा) – ईश्वरीय और वीर चरित्र (राम, कृष्ण)
    • लाल और काला – नकारात्मक चरित्र (रावण, दुर्योधन)
    • पीला – संतों और महिलाओं के लिए
  • भव्य पोशाक: कलाकार भारी पोशाक पहनते हैं जिसमें विस्तृत आभूषण और बड़ी स्कर्ट होती हैं।
  • मुकुट (माथे का आभूषण): यह पात्र के महत्व को दर्शाता है।

(B) अभिनय (अभिनय और हाव-भाव)

  • कथकली में मुद्राओं (हस्त संचालन) और आंखों की अभिव्यक्ति का विशेष महत्व है।
  • इसमें संगीत, नृत्य और नाटक का संगम होता है।
  • कलाकार अपनी आंखों, चेहरे और हाथों से पूरी कहानी प्रस्तुत करते हैं।

(C) संगीत और वाद्य यंत्र

  • कथकली में पारंपरिक मदालम, चेंडा, इडक्का और शंख वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
  • पारंपरिक मलयालम और संस्कृत भाषा में गीत गाए जाते हैं।

3. कथकली की प्रमुख शैलियाँ

  1. कल्लुवाझि चिट्टू – सबसे प्राचीन शैली, जिसमें कठोर और सटीक शारीरिक मूवमेंट होते हैं।
  2. कप्पिल शैली – इसमें अधिक कोमल भावनाओं और अभिव्यक्तियों पर जोर दिया जाता है।
  3. केंद्र शैली – दोनों शैलियों का मिश्रण, जो आज के कथकली में प्रचलित है।

4. कथकली में प्रमुख कथाएँ

  • रामायण: श्रीराम और रावण की कथा
  • महाभारत: अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध
  • भगवद पुराण: श्रीकृष्ण की लीलाएँ
  • शिव-पार्वती और अन्य धार्मिक कथाएँ

5. आधुनिक युग में कथकली

  • आज कथकली भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय है।
  • केरल के कथकली केंद्रों में इसे सिखाया जाता है।
  • UNESCO ने कथकली को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है।

6. प्रसिद्ध कथकली कलाकार

  • केलू नायर
  • कृष्णन नायर
  • रामन कुट्टी नायर
  • कलामंडलम गोपी

निष्कर्ष

कथकली केवल एक नृत्य शैली नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यह नृत्य हमें भारतीय महाकाव्यों की कहानियों से जोड़ता है और दर्शकों को एक अद्भुत नाट्य अनुभव प्रदान करता है।

अगर आप केरल जाते हैं, तो कथकली प्रदर्शन देखना न भूलें!

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